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नई दिल्ली: 90 के दशक का बिहार अगर आपने देखा, जाना या सुना है, तो साधु यादव और सुभाष यादव के नामों से जरूर वाकिफ होंगे। उस दौर में कहा जाता था कि लालू प्रसाद यादव हमेशा S-1 और S-2 के साथ होते थे। S-1 का मतलब था साधु यादव और S-2 का मतलब सुभाष यादव। ये दोनों न केवल लालू यादव के साले थे बल्कि आरजेडी की राजनीति में महत्वपूर्ण किरदार भी थे।


सीएम हाउस से तय होती थी ठेकेदारी और ट्रांसफर-पोस्टिंगबिहार की राजनीति में साधु और सुभाष यादव का दबदबा ऐसा था कि ठेकेदारियां, ट्रांसफर और पोस्टिंग की डील पटना स्थित 1 अणे मार्ग, यानी मुख्यमंत्री आवास से तय की जाती थी। लेकिन राजनीति की राहें कभी सीधी नहीं होतीं। यही कारण रहा कि लालू-राबड़ी परिवार और सुभाष यादव के बीच रिश्ते इतने बिगड़ गए कि 21 साल से दोनों पक्षों में कोई बातचीत नहीं हुई।


सुभाष यादव का सनसनीखेज दावा: किडनैपिंग इंडस्ट्री और सीएम हाउस कनेक्शनहाल ही में सुभाष यादव ने एक इंटरव्यू में दावा किया कि 90 के दशक में बिहार में अपहरण की घटनाओं में फिरौती की डील मुख्यमंत्री आवास से की जाती थी। उन्होंने पत्रकार श्रीकांत प्रत्यूष को दिए एक साक्षात्कार में खुलासा किया कि पूर्णिया और अररिया इलाके में एक किडनैपिंग केस में फिरौती की बातचीत सीधे लालू यादव और उनके करीबी नेताओं ने की थी।


“सीएम हाउस में हुआ था फिरौती की रकम का सौदा”

सुभाष यादव ने बताया कि एक अपहरण केस की फिरौती की डील पटना स्थित सीएम हाउस में हुई थी। उन्होंने कहा कि उस मामले में आरजेडी नेता प्रेमचंद गुप्ता और खुद लालू यादव ने हस्तक्षेप किया था।
“जाकिर हुसैन नामक व्यक्ति को बार-बार धमकाया जाता था। उसे पार्टी में मैंने ही लाया था और वह मुझे बताता था कि शहाबुद्दीन, प्रेमचंद गुप्ता और लालू यादव खुद उसे फोन कर रहे हैं कि बंधक को छोड़ दे। लेकिन किडनैपिंग किसी और ने की थी।”
गाड़ियों की जब्ती और लालू यादव का नामसुभाष यादव ने एक और चौंकाने वाला खुलासा किया कि लालू यादव के इशारे पर शोरूम से गाड़ियां उठवाई जाती थीं। उन्होंने कहा कि एक बार टाटा मोटर्स से शादी के लिए 15-16 गाड़ियां ली गई थीं और बाद में उन्हें वापस कर दिया गया।
लालू यादव से मनमुटाव की असली वजहजब सुभाष यादव से पूछा गया कि आखिर लालू यादव और उनके बीच दूरी क्यों बढ़ी, तो उन्होंने कहा:
“हमारा बेटा जवान हो रहा था, बेटी सयानी हो गई थी। तब उन्हें लगा कि अब हमारी जरूरत नहीं है। कुछ लोग उन्हें हमारे खिलाफ भड़काते थे और उन्होंने हमसे दूरी बना ली।”


90 के दशक की ‘किडनैपिंग इंडस्ट्री’ का काला सच90 के दशक में बिहार में अपहरण एक उद्योग की तरह फल-फूल रहा था। व्यापारियों, डॉक्टरों और प्रतिष्ठित लोगों का अपहरण आम बात हो गई थी। सुभाष यादव के इस बयान ने उस दौर के राजनीतिक और आपराधिक गठजोड़ को एक बार फिर से चर्चा में ला दिया है।

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