Navrashtra Bharat (69)

भारत और चीन के बीच लंबे समय से चल रहे सीमा विवाद ने एक बार फिर से नया मोड़ ले लिया है। जहां एक तरफ लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) को लेकर दोनों देशों के बीच बातचीत का सिलसिला जारी था, वहीं दूसरी तरफ चीन ने अपना विस्तारवादी रवैया दिखाते हुए लद्दाख के कुछ हिस्सों पर अपना दावा किया है। इस नई हरकत पर भारत के विदेश मंत्रालय ने कड़ा विरोध जताया है।

चीन ने लद्दाख को बताया अपना हिस्सा

चीन ने हाल ही में अपने होतान प्रांत में दो नए काउंटियों की घोषणा की है, जिनमें से कुछ क्षेत्र लद्दाख के अंदर आते हैं। इस पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “भारत ने कभी भी लद्दाख में अपने क्षेत्र पर चीन के अवैध कब्जे को स्वीकार नहीं किया है।”

रणधीर जायसवाल ने शुक्रवार (3 जनवरी 2025) को मीडिया से बातचीत में कहा, “चीन द्वारा घोषित तथाकथित काउंटियों के अधिकार क्षेत्र में आने वाले क्षेत्र भारत के केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख का हिस्सा हैं। नए काउंटियों की स्थापना भारत की संप्रभुता को कमजोर करने का प्रयास है, लेकिन इससे भारत के लंबे समय से चले आ रहे रुख पर कोई असर नहीं पड़ेगा।”

चीन के दावे पर भारत की तीखी प्रतिक्रिया

भारत ने चीन के इस कदम को लेकर राजनयिक माध्यमों से कड़ा विरोध दर्ज कराया है। विदेश मंत्रालय ने यह भी स्पष्ट किया कि चीन के ऐसे कदम अवैध हैं और इन्हें भारत कभी स्वीकार नहीं करेगा। जायसवाल ने कहा, “चीन का यह दावा हमारे क्षेत्र पर उसके अवैध और जबरन कब्जे को वैधता नहीं प्रदान कर सकता। भारत अपने अधिकारों की रक्षा के लिए हरसंभव कदम उठाएगा।”

यारलुंग त्सांगपो नदी पर चीन का सबसे बड़ा डैम: भारत की चिंता

चीन ने तिब्बत में यारलुंग त्सांगपो नदी पर दुनिया का सबसे बड़ा डैम बनाने की योजना बनाई है। यह नदी आगे चलकर भारत में ब्रह्मपुत्र के नाम से जानी जाती है और बांग्लादेश में इसे जुमना नदी कहा जाता है। इस डैम को लेकर भारत और बांग्लादेश दोनों ही चिंतित हैं।

विदेश मंत्रालय ने इस मुद्दे पर भी चीन को अपनी चिंताओं से अवगत कराया है। रणधीर जायसवाल ने कहा, “हमने 25 दिसंबर 2024 को चीनी मीडिया द्वारा जारी रिपोर्ट देखी है, जिसमें यारलुंग त्सांगपो नदी पर एक जलविद्युत परियोजना का जिक्र किया गया है। ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन द्वारा किए जाने वाले ऐसे कदम डाउनस्ट्रीम देशों के लिए गंभीर खतरा बन सकते हैं।”

पारदर्शिता और परामर्श की आवश्यकता

भारत ने चीन से मांग की है कि वह इस परियोजना के प्रभावों को लेकर पारदर्शिता बनाए और डाउनस्ट्रीम देशों के साथ उचित परामर्श करे। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, “हमने चीनी पक्ष से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया है कि ब्रह्मपुत्र के डाउनस्ट्रीम देशों के हितों को नुकसान न पहुंचे। चीन को यह समझना होगा कि इस तरह की गतिविधियों से न केवल पर्यावरणीय नुकसान होगा, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता भी प्रभावित होगी।निष्कर्ष: भारत की कूटनीतिक सतर्कता

चीन की इन हरकतों ने एक बार फिर से भारत-चीन संबंधों में तनाव बढ़ा दिया है। जहां सीमा विवाद पर पहले से ही तनावपूर्ण स्थिति थी, वहीं अब नदी परियोजना और नए क्षेत्रीय दावों ने इसे और जटिल बना दिया है। भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह अपनी क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता से कोई समझौता नहीं करेगा।

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