
योग गुरु स्वामी रामदेव ने मंदिर-मस्जिद विवाद पर अपनी अहम प्रतिक्रिया दी है और इस मामले में एक बड़ा बयान दिया है। उन्होंने मथुरा में मस्जिद विवाद को लेकर कहा कि “मथुरा श्री कृष्ण की जन्मभूमि है, वहां मस्जिद का क्या काम?” स्वामी रामदेव का यह बयान एबीपी न्यूज़ को दिए गए इंटरव्यू में आया, जिसमें उन्होंने कहा कि हमारे ऐतिहासिक और धार्मिक तीर्थ स्थल, जहां आक्रांताओं ने क्रूरता की थी, उन्हें हम पुनः अपने कब्जे में लें। उनका मानना है कि अगर हर स्थान पर विवाद उठता रहेगा तो देश के भाईचारे को खतरा हो सकता है।
स्वामी रामदेव ने अपने बयान में आगे कहा, “हमें हर जगह विवाद नहीं खड़ा करना चाहिए। हमारे कुछ स्थान ऐसे हैं जो हमारे लिए गौरव का प्रतीक हैं, जैसे मथुरा, काशी विश्वनाथ। भगवान भोलेनाथ की नगरी काशी में ज्ञानवापी मस्जिद का क्या काम हो सकता है? यह अपने आप में यह साबित करता है कि हमारे पास सनातन नाम है।” साथ ही उन्होंने मथुरा को लेकर कहा, “मथुरा श्री कृष्ण भगवान की जन्मभूमि है, और वहां मस्जिद का क्या काम हो सकता है? ऐसे हमारे जो प्रमुख तीर्थ स्थल हैं, वहां मुस्लिम समुदाय को भी एक बड़ा दिल दिखाना चाहिए और आगे आकर इस मुद्दे का समाधान करना चाहिए।”
स्वामी रामदेव के इस बयान ने मथुरा और काशी से जुड़े विवादों को फिर से चर्चा में ला दिया है। इन दोनों जगहों पर हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बीच लंबे समय से विवाद चल रहे हैं। मथुरा और काशी में मंदिरों के ऊपर बनाई गई मस्जिदों को लेकर कोर्ट में मामलों की सुनवाई चल रही है।
मथुरा और काशी में क्या है विवाद?
1. काशी (ज्ञानवापी मस्जिद) विवाद:
वाराणसी में स्थित ज्ञानवापी मस्जिद का मामला 1991 से कोर्ट में चल रहा है। हालांकि, 2021 के बाद इस मामले में नई गति आई। इस साल 2024 में पांच महिलाओं ने याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने दावा किया कि ज्ञानवापी मस्जिद के भीतर भगवान की मूर्तियां मौजूद हैं और उन्हें पूजा करने की अनुमति दी जानी चाहिए। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस याचिका पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यह याचिका उपासना स्थल कानून का उल्लंघन नहीं करती है। इसके बाद से इस मामले में कानूनी प्रक्रिया तेजी से आगे बढ़ी है और फरवरी 2024 में इन महिलाओं को पूजा करने की अनुमति भी मिल गई।
ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद अब और गहरा हो गया है, क्योंकि इस मुद्दे ने न केवल धार्मिक, बल्कि राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी लोगों का ध्यान आकर्षित किया है। 2024 के फरवरी में उच्च न्यायालय ने कहा कि याचिका उपासना स्थल कानून 1991 के खिलाफ नहीं है और इसके परिणामस्वरूप पूजा करने की अनुमति दी गई है।
2. मथुरा (शाही ईदगाह मस्जिद) विवाद:
मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद के निर्माण को लेकर हिंदू पक्ष का यह दावा रहा है कि यह मस्जिद भगवान श्री कृष्ण के जन्म स्थल पर बनाई गई है। 2020 में छह हिंदू भक्तों ने एक याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने मस्जिद को हटाने की मांग की थी। अब तक इस मामले में कुल 18 याचिकाएं दायर की जा चुकी हैं। मथुरा के इस मस्जिद विवाद में भी हिंदू पक्ष यह कह रहा है कि शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण भगवान श्री कृष्ण के जन्म स्थल पर हुआ है और इसे हटाने की आवश्यकता है।
अगस्त 2024 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यह फैसला दिया था कि इन याचिकाओं का उपासना स्थल कानून 1991 से कोई विरोध नहीं है, लेकिन 2023 में हाई कोर्ट ने एक कोर्ट कमिश्नर को नियुक्त किया था, जिसे मस्जिद का सर्वे करने का निर्देश दिया गया था। हालांकि, जनवरी 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने इस पर अंतरिम रोक लगा दी थी, और इस मामले की सुनवाई अभी सुप्रीम कोर्ट में चल रही है।
सामाजिक और धार्मिक दृष्टिकोण:
स्वामी रामदेव के बयान ने एक बार फिर से इस मुद्दे को तूल दे दिया है। उनके अनुसार, भारत में धार्मिक विवादों को सुलझाने के लिए सभी समुदायों को दिल बड़ा करके एक दूसरे के साथ समझदारी से पेश आना चाहिए। उन्होंने विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय से अपील की कि वे मथुरा और काशी जैसे स्थानों पर संवेदनशीलता के साथ विचार करें और इस विवाद को शांति से सुलझाने में सहयोग करें।
स्वामी रामदेव के बयान से यह स्पष्ट होता है कि वे इस तरह के विवादों को धार्मिक सौहार्द और भाईचारे की भावना से सुलझाना चाहते हैं। उनका मानना है कि अगर इस प्रकार के मुद्दे लगातार उठते रहेंगे, तो इससे समाज में तनाव और विभाजन की स्थिति पैदा हो सकती है।
मथुरा और काशी में मंदिर-मस्जिद विवाद भारतीय समाज में एक जटिल और संवेदनशील मुद्दा बन चुका है। जहां एक ओर हिंदू पक्ष इन स्थानों को अपने धार्मिक अधिकार के रूप में देखता है, वहीं मुस्लिम पक्ष इन मस्जिदों को धार्मिक स्थल मानता है। स्वामी रामदेव का यह बयान इस विवाद को नए दृष्टिकोण से देखने का एक प्रयास है, जिसमें उन्होंने दोनों समुदायों से अपील की है कि वे इस मुद्दे को शांति और सहमति से सुलझाने के लिए आगे बढ़ें।