महाराष्ट्र की राजनीति में एक कहावत है कि एक हफ्ते का समय बहुत मायने रखता है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने इस धारणा को भी बदलते हुए सियासत के हर पुराने नियम को चुनौती दी है। 23 नवंबर को महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के नतीजे आए। बीजेपी ने 288 में से 132 सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि उसके सहयोगी दल शिवसेना ने 57 और एनसीपी ने 41 सीटों पर सफलता हासिल की। हालांकि बहुमत के करीब होने के बावजूद, बीजेपी ने अपनी रणनीति को बड़े ही शांत और सोचे-समझे तरीके से आगे बढ़ाया। न तो किसी तरह की जल्दबाजी दिखाई दी और न ही सीएम पद को लेकर कोई असमंजस का संकेत।
साइलेंट मोड में बीजेपी
जब नतीजे आए, तब से लेकर अगले चार दिनों तक “कौन बनेगा मुख्यमंत्री?” का सवाल हर तरफ चर्चा का केंद्र बना रहा। मीडिया में अलग-अलग अटकलें लगाई जा रही थीं। वहीं, बीजेपी ने इस पूरे मुद्दे पर ‘साइलेंट मोड’ अपनाए रखा। 27 नवंबर को शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे को मीडिया के सामने आना पड़ा, और उन्होंने यह स्पष्ट किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह जो भी निर्णय लेंगे, वही उन्हें स्वीकार होगा। बीजेपी को इससे फायदा हुआ, लेकिन इस पर किसी नेता ने कोई टिप्पणी या प्रतिक्रिया नहीं दी।
अजित पवार का बयान और बीजेपी का पहला कदम
28 नवंबर को अमित शाह ने दिल्ली में एनसीपी नेता अजित पवार और एकनाथ शिंदे से मुलाकात की। चुनावी नतीजे आने के पांच दिन बाद यह बीजेपी का पहला बड़ा कदम था। इसके बाद दो दिन तक कोई गतिविधि नहीं हुई। फिर अचानक बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष ने घोषणा की कि पांच दिसंबर को शपथ ग्रहण समारोह होगा, लेकिन मुख्यमंत्री के नाम पर वही चुप्पी बनी रही।
एकनाथ शिंदे का गांव जाना और बीजेपी की चुप्पी
इस बीच, एकनाथ शिंदे दिल्ली से लौटकर गांव चले गए और वहां उनकी तबीयत खराब हो गई। इसे लेकर राजनीतिक हलकों में कई तरह की अटकलें लगाई गईं। कुछ ने इसे शिंदे की नाराजगी से जोड़ा। लेकिन बीजेपी ने फिर भी किसी तरह की प्रतिक्रिया नहीं दी। इसी दौरान एनसीपी नेता अजित पवार ने पहली बार बयान दिया कि मुख्यमंत्री बीजेपी से ही होगा।
फडणवीस पर मुहर
तीन दिसंबर को एकनाथ शिंदे मुंबई लौटे और मुख्यमंत्री आवास “वर्षा” पहुंचे। वहीं, देवेंद्र फडणवीस ने उनसे मुलाकात की। आखिरकार, 4 दिसंबर को विधायक दल की बैठक के बाद देवेंद्र फडणवीस के नाम पर मुहर लगाई गई। 23 नवंबर को चुनावी नतीजों के बाद जो माहौल शिंदे के पक्ष में दिख रहा था, उसे बीजेपी ने पूरी तरह बदल दिया। इन 14 दिनों में बीजेपी ने अपनी रणनीति से यह तय कर दिया कि मुख्यमंत्री उनकी पार्टी से ही बनेगा, और पूरे महाराष्ट्र में इसे लेकर कोई विरोध या असहमति नहीं दिखी।
आलाकमान का संदेश
बीजेपी की इस रणनीति ने पार्टी के अंदर और बाहर दो संदेश दिए। एक तरफ, महायुति के दलों को यह संकेत मिला कि अंतिम निर्णय सिर्फ बीजेपी हाईकमान ही लेगा। दूसरी तरफ, पार्टी के भीतर यह स्पष्ट कर दिया गया कि चाहे किसी नेता का योगदान कितना भी बड़ा हो, अंतिम फैसला केंद्रीय नेतृत्व का ही होगा। महाराष्ट्र की जीत में देवेंद्र फडणवीस का अहम योगदान रहा, लेकिन उनके नाम पर भी मुहर हाईकमान के निर्देश पर ही लगी। इस प्रक्रिया ने बीजेपी के क्षेत्रीय नेताओं को भी यह याद दिलाया कि पार्टी में आलाकमान का स्थान सर्वोपरि है।
बीजेपी की यह “कछुआ चाल” न सिर्फ राजनीतिक सूझबूझ का उदाहरण है, बल्कि यह भी दिखाती है कि पार्टी किस तरह अपने उद्देश्यों को बगैर किसी जल्दबाजी के हासिल करती है।