Navrashtra Bharat

रंगभरी एकादशी पर बाबा विश्वनाथ और मां गौरा के गौने की परंपरा पूरी

रंगभरी एकादशी के पावन अवसर पर वाराणसी में बाबा विश्वनाथ और मां गौरा के गौना की प्राचीन परंपरा का निर्वहन किया गया। इस विशेष दिन पर, पूर्व महंत परिवार की ओर से बाबा विश्वनाथ और मां गौरा की पालकी यात्रा निकाली गई, जिसमें वे सजीव रूप से मंदिर परिसर में विराजमान हुए।

जैसे ही यह रजत पालकी वाराणसी की गलियों से होकर काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर की ओर बढ़ी, श्रद्धालुओं ने पूरे भक्तिभाव से “हर हर महादेव” के उद्घोष किए और बाबा के दर्शन कर उनके चरणों में नमन किया। पूरे मार्ग में अबीर और गुलाल उड़ाए गए, जिससे संपूर्ण वातावरण भक्तिमय और रंगीन हो गया।


सुबह ही मंदिर परिसर पहुंची पालकी, भक्तों में उमड़ा जोश

वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर में रंगभरी एकादशी का विशेष महत्व है। यह परंपरा सदियों पुरानी है, जिसमें पूर्व महंत परिवार के द्वारा बाबा भोलेनाथ और मां गौरा को उनके परिवार सहित रजत पालकी में मंदिर लाया जाता है। काशी में मान्यता है कि इस दिन से होली के रंगोत्सव की औपचारिक शुरुआत होती है।

इस वर्ष, परंपरा के अनुसार पालकी यात्रा निकाली गई, लेकिन यह यात्रा पूर्व वर्षों की तुलना में भिन्न रही। सामान्यतः इस यात्रा के दौरान भारी जनसमूह उमड़ता है, लेकिन इस बार, प्रशासनिक निर्देशों के कारण सीमित संख्या में ही लोग पालकी यात्रा के दर्शन कर सके

सुबह ही पूर्व महंत परिवार से यह पालकी मंदिर परिसर के लिए रवाना हुई और वहां पहुंचने पर भक्तों ने अबीर गुलाल अर्पित कर बाबा और मां गौरा के स्वागत में श्रद्धा प्रकट की। इसके बाद, दोपहर में गर्भगृह तक मूर्ति को ले जाया गया, जहां मंदिर के पुरोहितों और भक्तों ने विशेष पूजा-अर्चना की।


काशी में गूंज रही है चर्चाओं की लहर

इस बार की पालकी यात्रा को लेकर वाराणसी में कई तरह की चर्चाएँ हो रही हैं। बताया जा रहा है कि प्रशासन की ओर से पूर्व महंत परिवार को पहले ही कुछ विशेष निर्देश दिए गए थे। इसके बावजूद, इस बार यात्रा के समय और आयोजन की प्रक्रिया में बदलाव देखने को मिला

लोगों के बीच इस बात की चर्चा है कि बाबा भोलेनाथ और मां गौरा की पालकी को इस बार ढक कर क्यों ले जाया गया? और यात्रा के सुबह जल्दी संपन्न होने के पीछे क्या कारण रहे?

हालांकि, इस बदलाव के बावजूद भक्तों का उत्साह कम नहीं हुआ। श्रद्धालुओं ने पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ बाबा के गौना में भाग लिया और रंगभरी एकादशी के इस शुभ अवसर पर अपनी आस्था प्रकट की।

रंगों और श्रद्धा का संगम: होली की शुरुआत

रंगभरी एकादशी केवल एक धार्मिक परंपरा ही नहीं, बल्कि काशी में होली के रंगों का प्रारंभिक संकेत भी मानी जाती है। इस दिन से शहर के कोने-कोने में होली की उमंग और उत्सव का माहौल बन जाता है।

इस विशेष अवसर पर, काशी की गलियों में बाबा विश्वनाथ के जयघोष और अबीर-गुलाल की वर्षा के बीच भक्ति का एक अद्वितीय संगम देखने को मिला। भक्तों का मानना है कि रंगभरी एकादशी पर बाबा भोलेनाथ स्वयं काशीवासियों के साथ होली खेलते हैं, जिससे इस पर्व की पवित्रता और महत्व और भी बढ़ जाता है।

इस बार की यात्रा और उससे जुड़े घटनाक्रमों ने भले ही चर्चाओं को जन्म दिया हो, लेकिन श्रद्धा और भक्ति की भावना में कोई कमी नहीं आई। वाराणसी में रंगभरी एकादशी के साथ होली के रंगों का आगाज हो चुका है और अब पूरा शहर भोलेनाथ की भक्ति में रंगने को तैयार है।

Please follow and like us:
RSS
Follow by Email
X (Twitter)
Visit Us
Follow Me
YouTube
LinkedIn
Share
Instagram

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

en English