
श्रीनगर – जम्मू-कश्मीर में हिंदू धार्मिक स्थलों की संपत्तियों पर अवैध कब्जे का बड़ा मामला सामने आया है। ताजा रिपोर्ट्स के मुताबिक, 1400 से ज्यादा मंदिरों और उनकी संपत्तियों पर अतिक्रमण हो चुका है, जिनकी कुल अनुमानित कीमत ₹25,000 करोड़ से भी अधिक बताई जा रही है।
इस गंभीर स्थिति के चलते अब कश्मीरी पंडित समुदाय ने सरकार से विशेष कानून बनाने की मांग की है, जो इन मंदिरों और संपत्तियों को वक्फ कानून की तर्ज पर कानूनी सुरक्षा प्रदान करे।
1990 के बाद से मंदिरों की स्थिति हुई बदतर
कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति (KPSS) के अनुसार, 1990 के दशक में जब हजारों कश्मीरी पंडित घाटी छोड़कर चले गए, तब से ही उनके मंदिरों और धार्मिक संपत्तियों पर बड़े पैमाने पर अवैध कब्जा होता चला गया। कई मंदिर अब खंडहर बन चुके हैं, और कुछ की जगह पर शॉपिंग कॉम्प्लेक्स और कमर्शियल बिल्डिंग्स खड़ी कर दी गई हैं।
KPSS की मांग – वक्फ बोर्ड की तरह “सनातन बोर्ड” का गठन हो
KPSS के अध्यक्ष संजय टिक्कू ने बयान में कहा:
“अगर वक्फ एक्ट मुस्लिम समुदाय की संपत्तियों की रक्षा कर सकता है, तो हिंदू मंदिरों के लिए सनातन बोर्ड क्यों नहीं बन सकता?”
उन्होंने मांग की कि घाटी में सभी हिंदू धर्मस्थलों को कानूनी निगरानी में लाया जाए और इनका प्रबंधन एक श्राइन बोर्ड के तहत हो, जिसमें स्थानीय कश्मीरी पंडितों की भागीदारी सुनिश्चित की जाए।
कब्जा किए गए प्रमुख मंदिरों की सूची
संघर्ष समिति ने जिन मंदिरों पर अवैध कब्जे का आरोप लगाया है, उनमें प्रमुख नाम शामिल हैं:
- आनंदीश्वर भैरव मंदिर, मैसूमा
- गौरी शंकर मंदिर, बरबर शाह
- नरसिंह मंदिर, एक्सचेंज रोड
- बाबा धरम दास मंदिर
- काली मंदिर, लाल चौक के पास
- शिव मंदिर, खाद्य एवं आपूर्ति विभाग परिसर में
- पवित्र झरना, अहमदा कदल
इन स्थलों में से कई आज पूरी तरह से वीरान हैं या बर्बादी की कगार पर हैं।
सुप्रीम कोर्ट जाने की चेतावनी
KPSS ने सरकार को चेताया है कि यदि जल्द ही इस मुद्दे पर कोई ठोस कानून नहीं लाया गया, तो संघर्ष समिति के पास सुप्रीम कोर्ट जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचेगा।
क्या कहती है सरकार?
हालांकि पिछले कुछ वर्षों में सरकार ने कुछ धार्मिक स्थलों का पुनर्निर्माण और बहाली जरूर की है, लेकिन हजारों मंदिर अब भी छोड़ दिए गए, नष्ट हो गए या व्यावसायिक इस्तेमाल में लाए जा रहे हैं।
निष्कर्ष: क्या मिलेगा मंदिरों को न्याय?
कश्मीरी पंडित समुदाय की यह मांग अब राजनीतिक बहस का विषय बनती जा रही है। जहां वक्फ बोर्ड मुस्लिम संपत्तियों की रक्षा करता है, वहीं हिंदू मंदिरों के लिए कोई ठोस संरचना नहीं है। अब देखना ये होगा कि केंद्र और जम्मू-कश्मीर प्रशासन सनातन बोर्ड जैसे किसी विशेष कानून की ओर कदम बढ़ाते हैं या नहीं।