जम्मू-कश्मीर में आरक्षण नीति के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों में तेजी आ गई है। रविवार को मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के आवास के बाहर सैकड़ों छात्र और कई राजनीतिक नेता एकत्रित हुए और राज्य सरकार से इस नीति की समीक्षा करने की मांग की। यह नीति इस साल की शुरुआत में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के नेतृत्व वाले प्रशासन द्वारा लागू की गई थी।

इस विरोध में राष्ट्रीय कांग्रेस (NC) के सांसद रुहुल्लाह मेहदी भी शामिल हुए। उन्होंने इस विरोध को समर्थन दिया और सोशल मीडिया प्लेटफार्म ‘X’ पर एक पोस्ट में मुख्यमंत्री कार्यालय के बाहर इस नीति के पुनः विचार की अपील की थी। इसके साथ ही पीडीपी नेता वहीद परा, इल्तिजा मुफ्ती और अवामी एकता पार्टी के नेता शेख खुरशी (इंजीनियर राशिद के भाई) भी इस प्रदर्शन में शामिल हुए। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के बेटे भी इस विरोध में भाग लेते हुए नजर आए और रुहुल्लाह मेहदी के साथ खड़े हुए।

आरक्षण नीति की जानकारी
यह आरक्षण नीति इस साल की शुरुआत में विधानसभा चुनाव से पहले उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के नेतृत्व में पेश की गई थी। इसके तहत सामान्य वर्ग के लिए आरक्षण का प्रतिशत कम किया गया और आरक्षित वर्ग के लिए बढ़ाया गया। इसके अतिरिक्त, अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को 8 प्रतिशत आरक्षण दिया गया और सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग आयोग (SEBC) की सिफारिशों के आधार पर ओबीसी सूची में 15 नई जातियों को जोड़ा गया। यह नीति संसद द्वारा भी मंजूर की गई थी, जिसमें कुछ जातियों और जनजातियों के लिए आरक्षण की मंजूरी दी गई थी।

विरोध प्रदर्शन का कारण
यह आरक्षण नीति राज्य में छात्रों और राजनीतिक नेताओं के बीच विरोध का कारण बन गई है। घाटी भर में इसकी समीक्षा और इसे पलटने की मांग उठने लगी है। सांसद रुहुल्लाह मेहदी ने नवंबर में छात्रों से यह वादा किया था कि वह इस विरोध में उनके साथ होंगे। उन्होंने कहा था कि नई सरकार इस नीति पर कोई कदम नहीं उठा रही क्योंकि चुनावी सरकार और उपराज्यपाल के कार्यालय के बीच अधिकारों का बंटवारा स्पष्ट नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें आश्वासन दिया गया है कि सरकार इस नीति को जल्द ही सुधारने का निर्णय लेगी।

सरकार द्वारा समीक्षा समिति की स्थापना
10 दिसंबर को जम्मू और कश्मीर सरकार ने आरक्षण नीति की समीक्षा के लिए एक तीन सदस्यीय समिति गठित की। इस समिति में स्वास्थ्य मंत्री सकीना इत्तू, वन मंत्री जावेद अहमद राणा और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री सतीश शर्मा को शामिल किया गया है। हालांकि, समिति को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कोई समय सीमा नहीं दी गई है। इसके दो दिन बाद, जम्मू और कश्मीर हाई कोर्ट ने आरक्षण नीति को चुनौती देने वाली एक नई याचिका की सुनवाई करते हुए सरकार से तीन सप्ताह के भीतर इस पर जवाब मांगा है।

मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का बयान
मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने रविवार को कहा कि उनकी सरकार ने इस नीति की समीक्षा के लिए एक समिति बनाई है और वे अदालत के आदेश का पालन करेंगे। उन्होंने कहा, “मैं समझता हूं कि इस नीति को लेकर जो भावनाएं सामने आ रही हैं, वे उचित हैं। मेरी पार्टी JKNC अपनी घोषणाओं की समीक्षा करने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। इस प्रक्रिया के तहत हमने एक उप-समिति बनाई है, जो सभी पक्षों से बात करके इस मुद्दे पर आगे बढ़ेगी।” उन्होंने यह भी कहा कि यह नीति पहले ही हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है और उनकी सरकार किसी भी अंतिम कानूनी निर्णय का पालन करेगी।

सीएम ने कहा, “मुझे जानकारी मिली है कि श्रीनगर में इस नीति के खिलाफ एक शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किया जाएगा। शांतिपूर्ण प्रदर्शन लोकतांत्रिक अधिकार है और मैं इसे पूरी तरह से स्वीकार करता हूं। कृपया यह जानकर प्रदर्शन करें कि इस मुद्दे को नजरअंदाज या दबाया नहीं जाएगा। सभी पक्षों की सुनवाई की जाएगी और उचित प्रक्रिया के बाद एक निष्पक्ष निर्णय लिया जाएगा।”

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