दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में सभी प्रमुख दलों ने अपनी-अपनी रणनीतियां तैयार कर ली हैं। आम आदमी पार्टी, भाजपा, कांग्रेस और वाम दलों के बीच मुकाबला बेहद दिलचस्प होने वाला है। वाम दलों का छह सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला इस बार चुनावी समीकरणों को और भी रोमांचक बना रहा है। अब यह देखना होगा कि 5 फरवरी 2025 को दिल्ली की जनता किसे अपना नेता चुनती है और कौन सी पार्टी राजधानी की सत्ता पर काबिज होती है।
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025: कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और वाम दलों की नई रणनीत
दिल्ली में विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियां जोरों पर हैं। चुनाव आयोग ने हाल ही में इसकी तारीखों का ऐलान कर दिया है, और अब राजधानी में राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं। चुनाव के लिए वोटिंग 5 फरवरी 2025 को होगी और नतीजे 8 फरवरी 2025 को घोषित किए जाएंगे। 70 सीटों वाली दिल्ली विधानसभा में इस बार मुकाबला बेहद दिलचस्प होने वाला है।
पारंपरिक रूप से, दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच सीधा मुकाबला देखने को मिलता रहा है। लेकिन इस बार, कांग्रेस ने भी चुनाव में पूरी ताकत झोंकने का इरादा किया है। वहीं, वामपंथी दलों के चुनाव में शामिल होने के फैसले ने चुनावी समीकरणों को और भी रोचक बना दिया है।
वाम दलों की रणनीति: छह सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की वरिष्ठ नेता वृंदा करात ने घोषणा की है कि वाम दल दिल्ली विधानसभा चुनाव में अपनी मौजूदगी दर्ज कराएंगे। उन्होंने बताया कि वाम दलों ने दिल्ली में छह सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करने का फैसला किया है। इन छह सीटों में से दो सीटों पर माकपा सीधे चुनाव लड़ेगी, जबकि बाकी चार सीटों पर वाम दल अन्य घटकों के सहयोग से मैदान में उतरेंगे।
वृंदा करात ने यह भी स्पष्ट किया कि भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए वाम दल अन्य सीटों पर उन उम्मीदवारों का समर्थन करेंगे जो भाजपा को कड़ी टक्कर दे सकते हैं। करात ने कहा, “हमारा मुख्य उद्देश्य दिल्ली में भाजपा को सत्ता में आने से रोकना है। इसके लिए वामपंथी दल अपनी पूरी ताकत लगाएंगे।”
INDIA गठबंधन से अलग राह पर वाम दल
दिल्ली विधानसभा चुनाव में वाम दलों की इस रणनीति को INDIA गठबंधन के भीतर असहमति के रूप में देखा जा रहा है। गौरतलब है कि 2024 लोकसभा चुनावों के दौरान वाम दल इस गठबंधन का हिस्सा थे। लेकिन दिल्ली चुनाव में उन्होंने गठबंधन के बड़े घटक दलों—कांग्रेस और आम आदमी पार्टी—से अलग होकर अपने उम्मीदवार उतारने का निर्णय लिया है।
इस कदम को कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के लिए चिंता का विषय माना जा रहा है, क्योंकि इससे विपक्षी वोटों का बंटवारा हो सकता है। हालांकि, वाम दलों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि उनकी प्राथमिकता भाजपा को हराने की है, और इसी दिशा में वे अपनी रणनीति तैयार कर रहे हैं।
चुनावी समीकरण और वोट बंटवारे की संभावना
दिल्ली की राजनीति में वामपंथी दलों की उपस्थिति सीमित रही है, लेकिन उनका प्रभाव विशिष्ट क्षेत्रों और समुदायों पर देखा जा सकता है। छह सीटों पर चुनाव लड़ने के फैसले के पीछे वाम दलों की सोच है कि वे उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करें जहां उनकी पकड़ मजबूत है।
यह फैसला भाजपा और आप दोनों के लिए चुनौती पैदा कर सकता है। विपक्षी दलों के बीच मतों का बंटवारा भाजपा के लिए लाभदायक साबित हो सकता है। हालांकि, वाम दलों का कहना है कि उनकी यह रणनीति भाजपा को हराने के लिए ही बनाई गई है, न कि किसी और दल को कमजोर करने के लिए।
कांग्रेस और आप की तैयारियां
दिल्ली चुनाव में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी भी अपनी रणनीतियों को धार दे रही हैं। आम आदमी पार्टी, जो वर्तमान में दिल्ली में सत्ता में है, अपनी उपलब्धियों के दम पर जनता का समर्थन पाने की कोशिश करेगी। वहीं, कांग्रेस इस बार अपने पुराने जनाधार को वापस पाने के लिए सक्रिय है।
हालांकि, वाम दलों की नई रणनीति इन दोनों पार्टियों के लिए चुनौती बन सकती है। कांग्रेस और आप दोनों ही अपने-अपने वोट बैंक को बचाने और मजबूत करने के लिए एकजुट हो सकती हैं, लेकिन वाम दलों की उपस्थिति इस एकता में बाधा डाल सकती है।
भाजपा की तैयारी और चुनौती
दूसरी ओर, भाजपा इस बार पूरे जोश के साथ चुनावी मैदान में उतर रही है। पार्टी के लिए यह चुनाव महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह दिल्ली में लंबे समय से सत्ता से बाहर है। भाजपा अपने मुद्दों और विकास के वादों के साथ चुनावी रैली और प्रचार अभियान शुरू कर चुकी है। वाम दलों की मौजूदगी भाजपा के लिए स्थिति को और जटिल बना सकती है, क्योंकि इससे विपक्षी वोटों का बंटवारा होने की संभावना है।