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दिल्ली चुनाव: दलित वोटरों पर तीनों पार्टियों की नजर, AAP, BJP और कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला

दिल्ली में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (AAP) अपनी सियासी पकड़ मजबूत बनाए रखने के लिए पूरी कोशिश कर रही है। दिल्ली विधानसभा चुनाव में दलित मतदाता सबसे अहम भूमिका निभा सकते हैं। वहीं, भारतीय जनता पार्टी (BJP) और कांग्रेस भी इस मतदाता वर्ग को साधने में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इस बार तीनों दलों के बीच दलित मतों का बंटवारा तय है, जो चुनावी समीकरणों को गहराई से प्रभावित करेगा।

AAP को पहले मिला दलित वोट का भारी समर्थन

अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी, दिल्ली में लगातार तीसरी बार सत्ता में वापसी के लिए जोर लगा रही है। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, AAP को पहले दलित वोटरों का भारी समर्थन मिला था, जिससे उसने पिछला चुनाव शानदार तरीके से जीता था। लेकिन इस बार दलित समुदाय में निराशा और असंतोष के स्वर उभर रहे हैं।

BJP ने बढ़ाया दलित बहुल इलाकों में संपर्क अभियान

इस बार बीजेपी ने दलित बहुल क्षेत्रों में विशेष अभियान शुरू किया है। पार्टी ने दलितों के लिए कई लोकलुभावन वादे किए हैं, जिनमें शिक्षा, रोजगार और आर्थिक सहायता शामिल हैं। इससे दलित वोटों में सेंध लगाने की कोशिश की जा रही है।

भाजपा और AAP के बीच बयानबाजी तेज

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा डॉक्टर भीमराव आंबेडकर पर की गई टिप्पणी ने AAP और कांग्रेस को भाजपा के खिलाफ हमलावर होने का मौका दिया। इसके बाद बयानबाजी तेज हो गई, जिससे दलित समुदाय के मुद्दे फिर से चर्चा में आ गए।

दिल्ली की 12 सीटें आरक्षित, दलित वोटरों का निर्णायक रोल

दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में से 12 सीटें अनुसूचित जाति (SC) के लिए आरक्षित हैं। 2020 के चुनाव में इन सभी सीटों पर AAP ने जीत दर्ज की थी। विशेषज्ञों का कहना है कि इस बार दलित वोटरों का झुकाव तीनों दलों के बीच बंट सकता है, जिससे मुकाबला काफी दिलचस्प हो गया है।

दलित वोटरों का प्रभाव 30-35 सीटों पर

स्वतंत्र राजनीतिक विश्लेषक कुश आंबेडकरवादी का कहना है कि दिल्ली में कम से कम 30-35 सीटों पर दलित वोटर निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। हालांकि, दलित समुदाय में इस बार AAP के प्रति कुछ हद तक असंतोष देखा जा रहा है।

AAP के चुनावी प्रतीक का असर

आंबेडकरवादी ने बताया कि AAP का चुनावी चिन्ह झाड़ू दलितों को जोड़ने में मदद करता है। झाड़ू से दलित समुदाय भावनात्मक रूप से जुड़ा महसूस करता है। लेकिन अब समुदाय में यह धारणा बन रही है कि उनके मुद्दों पर खास ध्यान नहीं दिया गया।

वाल्मीकि समुदाय की नाराजगी

विशेषज्ञों का कहना है कि वाल्मीकि समुदाय, जो पहले AAP का समर्थन करता था, अब नाराज है। उनकी प्रमुख समस्याओं में नगर निगम में संविदा नौकरियां और हाथ से मैला ढोने की प्रथा का समाधान शामिल है, जिस पर कोई ठोस काम नहीं हुआ।

दलित नेताओं ने छोड़ी AAP

दलित समुदाय के कई प्रमुख नेता, जिन्होंने AAP के लिए मजबूत समर्थन जुटाया था, अब पार्टी छोड़ चुके हैं। इससे दलित मतदाताओं में पार्टी को लेकर विश्वास की कमी देखी जा रही है।

दलित वोटरों का आंकड़ा और जातीय संरचना

दिल्ली में लगभग 1.23 करोड़ दलित मतदाता हैं। इनमें से 24 लाख से अधिक चमार, 12 लाख से अधिक वाल्मीकि, और 4 लाख से अधिक खटीक एवं कोली शामिल हैं। इनके अलावा पासी, बंजारा, धोबी, जुलाहा, सपेरा और नट जैसे समुदाय भी प्रमुख भूमिका निभाते हैं।

बीजेपी और कांग्रेस का दलित एजेंडा

भाजपा ने दलित छात्रों को केजी से लेकर स्नातकोत्तर तक निशुल्क शिक्षा देने और ‘बीआर आंबेडकर वजीफा योजना’ के तहत औद्योगिक प्रशिक्षण केंद्रों में पढ़ाई के लिए महीने में 1,000 रुपये देने का वादा किया है। वहीं, AAP ने डॉक्टर आंबेडकर सम्मान छात्रवृत्ति योजना के तहत विदेश में पढ़ाई की इच्छा रखने वाले दलित छात्रों को वित्तीय सहायता देने का ऐलान किया है।

कांग्रेस को मिली देरी से चुनौती

कांग्रेस के नेता मानते हैं कि पार्टी ने दलित वोटरों को लुभाने में देर कर दी। हालांकि, अब वह सक्रिय हो गई है, लेकिन इससे कितना फायदा होगा, यह देखना बाकी है।

दिल्ली विधानसभा चुनाव में दलित मतदाता एक बार फिर चुनावी समीकरण को बदलने का माद्दा रखते हैं। AAP, BJP और कांग्रेस तीनों ने अपने-अपने स्तर पर दलितों को साधने की कोशिश की है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि चुनावी नतीजों पर दलित वोटरों का झुकाव कितना असर डालता है।

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