दिल्ली विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही राजनीतिक दलों ने वोटरों को अपने पक्ष में करने के लिए कोशिशें तेज कर दी हैं। दिल्ली में जाट समुदाय के वोटों को बेहद प्रभावी माना जाता है, और बीजेपी और आम आदमी पार्टी (AAP) दोनों ही इस वोट बैंक को साधने में जुटी हुई हैं। अरविंद केजरीवाल ने हाल ही में जाट समाज को केंद्र सरकार की ओबीसी सूची में शामिल करने की मांग उठाई है और इस मुद्दे पर बीजेपी पर निशाना साधा है।
जाट समुदाय का राजनीतिक महत्व
दिल्ली में जाट समुदाय की संख्या लगभग 10% है, और यह वोट बैंक कई ग्रामीण सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाता है। दिल्ली की 8 विधानसभा सीटें जाट बहुल मानी जाती हैं, जहां जाट वोटरों का झुकाव हार-जीत का फैसला कर सकता है। मौजूदा समय में इन सीटों में से 5 पर आम आदमी पार्टी का कब्जा है, जबकि 3 सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी।
जाट समुदाय का प्रभाव
दिल्ली में जातिगत समीकरण में जाट समुदाय की खास अहमियत है। हिंदू वोटरों में जाटों का एक मजबूत सामाजिक और राजनीतिक नेटवर्क है। खासकर दिल्ली के ग्रामीण इलाकों में जाट समुदाय का दबदबा है, जहां लगभग 60% गांवों में उनकी उपस्थिति निर्णायक मानी जाती है।
संगठित वोट बैंक
जाट समुदाय आम तौर पर संगठित तरीके से मतदान करता है, जिससे यह एक प्रभावी वोट बैंक के रूप में उभरता है। जब यह समुदाय किसी एक पार्टी के पक्ष में मतदान करता है, तो चुनाव के नतीजों पर इसका गहरा असर पड़ता है।
बीजेपी की रणनीति
बीजेपी ने इस बार नई दिल्ली सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय साहेब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश सिंह वर्मा को उम्मीदवार बनाया है। इससे पार्टी जाट वोटरों को अपने पक्ष में लाने की कोशिश कर रही है।
केजरीवाल का हमला
अरविंद केजरीवाल ने बीजेपी पर जाट समुदाय की अनदेखी का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार की ओबीसी सूची में जाट समाज को शामिल किया गया है, लेकिन केंद्र की ओबीसी सूची में उन्हें जगह नहीं दी गई। इसके चलते जाट समुदाय केंद्र सरकार की योजनाओं के लाभ से वंचित रह जाता है। केजरीवाल ने यह भी आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री मोदी ने चार बार जाट समुदाय को केंद्र की ओबीसी सूची में शामिल करने का वादा किया, लेकिन अब तक इसे पूरा नहीं किया गया।
जाट वोटरों को लेकर छिड़ी इस सियासी जंग में देखना होगा कि आगामी चुनावों में यह समुदाय किस पार्टी का समर्थन करता है।